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Sunday, April 29, 2012

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को फटकारा , इलाहाबाद आैर लखनऊ बेंच को न्‍यायिक अनुशासन बरतने की सलाह

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को फटकारा , इलाहाबाद आैर लखनऊ बेंच को न्‍यायिक अनुशासन बरतने की सलाह



•अमर उजाला ब्यूरो
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट और उसकी लखनऊ बेंच को एक ही मसले पर समानांतर सुनवाई करने पर कड़ी फटकार लगाई है। शीर्षस्थ अदालत ने हिदायत देते हुए कहा है कि न्याय देने के जोश में उस गंभीर जिम्मेदारी को नजर अंदाज नहीं किया जाना चाहिए जिसकी जजों से उम्मीद की जाती है।
जस्टिस दलवीर भंडारी की अध्यक्षता वाली पीठ ने लखनऊ डबल बेंच द्वारा इलाहाबाद की डबल बेंच के फैसले को नजरअंदाज किए जाने को अनुचित करार देते हुए कहा कि इस मामले में दोनों बेंचों का विरोधाभासी फैसला न्यायिक नियमों के विपरीत है। ऐसी स्थिति में सबसे बेहतर यही था कि मामले को बड़ी पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए भेज दिया जाता। सर्वोच्च अदालत के मुताबिक न्यायिक अनुशासनहीनता की स्थिति को काबू करने या समान बेंच के विचार न मिलने की स्थिति में मसले को बड़ी पीठ के समक्ष भेजा जाना ही उचित होता है
पीठ ने कहा कि लखनऊ डबल बेंच को खुद इस मामले पर निर्णय देने का भार नहीं उठाना चाहिए था, क्योंकि पहले ही उसी हाईकोर्ट की दूसरी डबल बेंच उसी मामले पर फैसला दे चुकी थी। शीर्षस्थ अदालत ने कहा कि हमारी राय में दोनों ही बेंच को न्यायिक अनुशासन व शिष्टाचार पर ध्यान देना चाहिए और भविष्य में ऐसा न हो, इसके लिए दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए। पीठ ने कहा कि हमारा मानना है कि न्याय देने के जोश में उस गंभीर जिम्मेदारी को नहीं भूला जाना चाहिए जिसकी उम्मीद जजों से की जाती है।

पीठ ने यह टिप्पणी उत्तर प्रदेश सरकार के सरकारी कर्मियों की ओर से दायर उस अपील पर की जिसमें प्रमोशन व वरिष्ठता में आरक्षण देने के राज्य सरकार के प्रावधान को चुनौती दी गई थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट की बेंच ने पहले फैसला दिया था


इसके बाद सरकारी कर्मचारी शीर्षस्थ अदालत पहुंचे थे। बाद में लखनऊ बेंच ने इलाहाबाद बेंच के फैसले को नजरअंदाज कर आदेश जारी कर राज्य सरकार के नियमों को गैरकानूनी करार दिया। इसके खिलाफ राज्य सरकार व उसके कई निगमों ने शीर्षस्थ अदालत का दरवाजा खटखटाया। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को इस पर ध्यान देना चाहिए था कि एक ही मामला दो अलग पीठों के समक्ष चल रहा है और दोनों के फैसले अलग होने की स्थिति में न्यायिक अनुशासनहीनता होगी।

News : Amar Ujala (29.4.12)
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अमर उजाला ब्यूरो
लखनऊ। न्यायपालिका के समक्ष त्वरित न्याय प्रदान करने की चुनौती अभी बनी हुई है। खासकर अधीनस्थ न्यायालयों में यह समस्या अधिक है। इससे वादियों में निराशा पैदा होती है। मनुष्य की उम्मीदों की सीमा होती है और मौजूदा जीवन शैली में अंतहीन इंतजार किसी के लिए भी संभव नहीं है। यह विचार सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एएस आनंद ने व्यक्त किए। वे शनिवार को लखनऊ विश्वविद्यालय के मालवीय सभागार में आयोजित प्रो. वीएन शुक्ला स्मृति व्याख्यान में बोल रहे थे।
भारतीय न्यायपालिका के 60 वर्षों की यात्रा पर चर्चा करते हुए जस्टिस आनंद ने कहा कि भारतीय संविधान को जनता के लिए प्रगतिशील रूप से व्यवस्थित करना आरंभ से ही न्यायपालिका का प्रयास रहा और आज भी यह काम जारी है। भूमि सुधार कानून के संदर्भ में न्यायपालिका एवं जनप्रतिनिधियों के बीच टकराव की चर्चा करते हुए उन्होंने समाजवादी सिद्धांतों एवं पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चुनाव पर हुए विवाद एवं न्यायिक निर्णयों का संदर्भ भी रखा। उन्होंने कहा कि सत्ताधारी दलों ने बहुत बार अनेक न्यायिक निर्णयों एवं सुधारों को प्रभावित किया है। न्यायपालिका ने विधि के शासन, व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं मानवाधिकार, पंथनिरपेक्षता, लैंगिक न्याय, लोकतांत्रिक मूल्य, अल्पसंख्यकों के अधिकार आदि की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। इस दौरान कुलपति प्रो. मनोज मिश्र सहित लविवि शिक्षक एवं विधि तथा न्याय क्षेत्र से जुड़ी हस्तियां मौजूद रहीं।


News : Amar Ujala (29.4.12)

6 comments:

  1. Hc nirakush ho gayi hai,ye pehle bhi kai bar ho chuka hai, kya iske peeche corruption hai?

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  2. THE GREAT

    HC apni garima ko pehchane Or janhit waale faisle de..
    warna is dohri nyay byebastha ko khatam hi kar diya jaye.

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  3. Allahabad highcourt bhrasht ho chuka hai... Pure desh me sabse jyada mamle isi court me lambit hai....SC ke fatkar ka in pr koi asar nahi padne wala h...iske phle v SC ne inki khichai ki hai.....

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  4. UPTET Lucknow Station Video (28th April 2012):
    http://www.youtube.com/watch?v=kkBLpXy0IXw

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