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Saturday, April 21, 2012

RTET Rajasthan : Eight Thousand B. Ed Candidates Applied Writ, First time in History of Rajasthan

आठ हजार बीएडधारियों ने लगाई याचिकाएं 

(RTET Rajasthan : Eight Thousand  B. Ed Candidates Applied Writ, First time in History of Rajasthan)

जयपुर। राजस्थान के इतिहास में पहली बार निकली 41,000 थर्ड ग्रेड शिक्षक भर्ती पदों में बैठने को लेकर अभ्यर्थी एडी से चोटी तक का जोर लगा रहे हैं। ऎसे ही करीब आठ हजार अभ्यर्थियों ने परीक्षा में बैठने का शॉर्ट कट निकाल लिया है

सरकार की तरफ से तो इनको परीक्षा में बैठने की इजाजत नहीं मिली लेकिन कोर्ट के दखल के बाद इन अभ्यर्थियों को परीक्षा में बैठने की अंतरिम इजाजत मिल गई है। राज्यभर में ऎसे सैकड़ों और भी अभ्यर्थी हैं जो कोर्ट की मदद से परीक्षाओं में बैठने की तैयारी में हैं।

यह है पूरा मामला 
पांच साल के बाद इतनी बड़ी संख्या में थर्ड ग्रेड शिक्षक भर्ती निकालने के बाद सरकार ने अपने ही स्तर पर कुछ नियम बना डाले। इन नियमों के अनुसार पिछले साल हुई प्रथम स्तर की टेट परीक्षा और द्वितिय स्तर की टेट परीक्षा में पास होने वाले बीएडधारियों और बीएसटीसी धारियों को ही परीक्षा में बैठने की अनुमति देने का प्रावधान है। 

प्रथम स्तर की परीक्षा में पास होने वाले बीएसटीसी धारियों को तो सरकार ने शिक्षक भर्ती परीक्षा में बैठने की अनुमति दे दी, लेकिन प्रथम स्तर की टेट परीक्षा पास करने वाले बीएडधारियों को सरकार ने अनुमति नहीं दी। ऎसे हजारों बीएडधारियों ने कोर्ट की शरण ली और बाद में उनको राहत मिली


News : Patrika (21.4.12)


8 comments:

  1. Dheeraj kumar ghaziabad ji agar aap mera blog padhe to please kal aap apne tetians dosto ke sath hapur diet pahunche 10am tet par meeting hei.
    adhyaksh-KUSHVEER SINGH.09457287549

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  2. ye baat aap bilkul sahi kah rahe h ab hamko b sarkar ki mansa theek nahi lag rahi h

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  3. क्या मीडिया टीईटी मेरिट के मुद्दे पर विमर्श से बच रही है ॽ
    पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। सवाल उठता है कि मीडिया समाजिक मुददों पर आज क्यों इतना मौन है। शिक्षा एक ऐसा मुद्दा है जिस पर मीडिया की भूमिका स्पष्ट होनी चाहिए।
    शिक्षा अधिकार कानून आने के बाद राज्य सरकारें टीईटी और नियुक्‍ति जैसे मामले में कोई सार्थक फैसला नहीं ले रही है और ना ही एनसीटीई की गाईड लाइन को ठीक ढंग से लागू कर पा रही है। प्राथमिक टीचर भर्ती पर विवाद बना है लेकिन मीडिय तनिक भी रूचि नहीं ले रही है। क्या टीईटी मेरिट सही हैॽ एकेडमिक मेरिट से अंतिम चयन कहां तक जायज हैॽ इसके प्रभाव क्या हैॽ क्यों नियमों में परिवर्तन किया जा रहा हैॽ इसके पीछे क्या मंशा है। जैसे मुद्दों पर मीडिया भी सही पत्रकरिता नहीं कर रही हैॽ कहीं कहीं तो अपनी रिपोर्ट में आरटीई एक्ट और एनसीटीई आदि के गाईड लाइन को बिना समझें खबरें बनाई जा रही है। मीडिया एक तरफ स्कूलों में नकल की खबरें छापती है तो दूसरी तरफ एकेडमिक मेरिट की आलोचना से दूर रहती है। मीडिया में विमर्श नहीं हो रहा हैॽ नकल माफियों के मन मुताबिका सब हो रहा है। अनिवार्य निशुल्क शिक्षा एक कानून है जिसके अंतर्गत गुणवत्तायुक्त शिक्षा की बात करता है। परिषदीय विद्यालयों की हालत किसी से छिपी नहीं है। पढ़ाई के नाम पर खानापूर्ति हो रही है। टीचर सही से पढा नहीं रहे हैं। मीडिया में इस तरह की खबरें आती रही हैं। आखिर टीईटी मेरिट या प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से प्राइमरी टीचर की भर्ती होना कितना सही हैॽ इस पर कोई बहस नहीं छपती है। बस सूत्रों के मुताबिक हर दिन वहीं खबर को चटकारेदार बनाकर तोड़ मड़ोरकर छपती रहती हैं। यहां अखबारों में भी टीआरपी का खेल जारी है। एकेडिमिक मेरिट की बात करें तो ज्यादा लोग अखबार पढ़ेंगे। और अगर टीईटी मेरिट की बात करेंगे तो टीआरपी कम होगी और टीईटी निरस्त की खबर में टीईटी फेल वाले रूचि लेंगे जिनकी संख्या अधिक है वे पढ़ेंगे और सरकुलेशन अखबार का बढ़ेगा। ऐसी मानसिकता के साथ पत्रकारिता की जा रही है।
    जन सरोकार से जुड़े मुद्दों पर अखबार कभी कभी उचित स्थान नहीं देती है तो इन मुद्दों को विज्ञापन के माध्यम से प्रकाशित करना आज की जरूरत हैॽ
    इस तरह अब मीडिया में जनसरोकार और समाजिक मुद्दों पर रूचि अखबार के प्रंबधन समिति अपने फायदें को देख कर लेती है। जिससे इन मुददों को अखबार में स्थान नहीं मिलता है। तब जनसरोकार के मुद्दों पर अखबारों में बकायदा पैसे देकर विज्ञापन द्वारा अपनी बात कहना ज्यादा प्रभावशाली है। इससे लोगों के हित की बात पहुंचेगी और सरकार चेतेगी। वहीं किसी अखबार को इन मुद्दों पर किसी कारणवश रूचि न होने पर वह कम से कम विज्ञापन के तौर पर तो छापने से इंकार तो नहीं कर सकता है। और लोगों में यह स्पष्ट रहेगा की यह समाजिक मुदृदा विज्ञापन है अगर आपाकों उचित लगता है तो इस मुददे का समर्थन कीजिए लेकिन हम जानते है कि सच्चाई की समर्थन सभी करते हैं।
    सूत्रों के मुताबिक खबरें बाद में पलट जाती है लेकिन उस समय अपना प्रभाव छोड़ जाती हैॽ
    जबकि ऐसी भ्रामक खबरें टीईटी को लेकर आती है। जहां पत्रकारिता पर सवाल उठना लाजिमी है। आरटीई एक्ट संसद में पारित हुआ है और इसे संसद ही संशोधित कर सकती है। लेकिन मीडिया में तथ्यों को बिना समझे खबरें लिखी जाती है। एकपक्षीय खबरें होती है कि दूसरें पक्ष की बातें नहीं कही जाती है। और एक पक्ष का विश्लेषण होता है जबकि उसी मुद्दे के दूसरे पक्ष का विश्लषण निश्पक्ष नहीं किया जाता है। वहीं यह बात टीईटी एकेडमिक मेरिट वर्सेज एकेडमिक मेरिट में क्या सही हैॽ आज के इस प्रतियोगिता के इस दौर में इस पर मीडिया बहस करने से बचती है और केवल सरकार की बातों को उठाती हैं। और एक तरह से समर्थन करती है। और यहां कितने ऐसे छात्र है जो टीईटी मेरिट के चयन के लिए मेंहनत की। और सरकार बदलने के बाद चल रही प्रक्रिया को निरस्त करने की खबरों को ही ज्यादा प्रमुखता दी जा रही है। वहीं दूसरा पक्ष यानी टीईटी मेरिट या प्रतियोगी परीक्षा यानी इस लोकतंत्रिक तरीके बारे में कोई बहस नहीं हाती है। टीईटी भर्ती पर अभी कोई रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई है। लेकिन जो खबरें दी जा रही है वह सूत्रों के मुताबिक है। लेकिन निश्पक्ष विश्लेषण की संभावना तो बनती है।
    अभिषेक कांत पाण्डेय

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  4. क्या मीडिया टीईटी मेरिट के मुद्दे पर विमर्श से बच रही है ॽ
    पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। सवाल उठता है कि मीडिया समाजिक मुददों पर आज क्यों इतना मौन है। शिक्षा एक ऐसा मुद्दा है जिस पर मीडिया की भूमिका स्पष्ट होनी चाहिए।
    शिक्षा अधिकार कानून आने के बाद राज्य सरकारें टीईटी और नियुक्‍ति जैसे मामले में कोई सार्थक फैसला नहीं ले रही है और ना ही एनसीटीई की गाईड लाइन को ठीक ढंग से लागू कर पा रही है। प्राथमिक टीचर भर्ती पर विवाद बना है लेकिन मीडिय तनिक भी रूचि नहीं ले रही है। क्या टीईटी मेरिट सही हैॽ एकेडमिक मेरिट से अंतिम चयन कहां तक जायज हैॽ इसके प्रभाव क्या हैॽ क्यों नियमों में परिवर्तन किया जा रहा हैॽ इसके पीछे क्या मंशा है। जैसे मुद्दों पर मीडिया भी सही पत्रकरिता नहीं कर रही हैॽ कहीं कहीं तो अपनी रिपोर्ट में आरटीई एक्ट और एनसीटीई आदि के गाईड लाइन को बिना समझें खबरें बनाई जा रही है। मीडिया एक तरफ स्कूलों में नकल की खबरें छापती है तो दूसरी तरफ एकेडमिक मेरिट की आलोचना से दूर रहती है। मीडिया में विमर्श नहीं हो रहा हैॽ नकल माफियों के मन मुताबिका सब हो रहा है। अनिवार्य निशुल्क शिक्षा एक कानून है जिसके अंतर्गत गुणवत्तायुक्त शिक्षा की बात करता है। परिषदीय विद्यालयों की हालत किसी से छिपी नहीं है। पढ़ाई के नाम पर खानापूर्ति हो रही है। टीचर सही से पढा नहीं रहे हैं। मीडिया में इस तरह की खबरें आती रही हैं। आखिर टीईटी मेरिट या प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से प्राइमरी टीचर की भर्ती होना कितना सही हैॽ इस पर कोई बहस नहीं छपती है। बस सूत्रों के मुताबिक हर दिन वहीं खबर को चटकारेदार बनाकर तोड़ मड़ोरकर छपती रहती हैं। यहां अखबारों में भी टीआरपी का खेल जारी है। एकेडिमिक मेरिट की बात करें तो ज्यादा लोग अखबार पढ़ेंगे। और अगर टीईटी मेरिट की बात करेंगे तो टीआरपी कम होगी और टीईटी निरस्त की खबर में टीईटी फेल वाले रूचि लेंगे जिनकी संख्या अधिक है वे पढ़ेंगे और सरकुलेशन अखबार का बढ़ेगा। ऐसी मानसिकता के साथ पत्रकारिता की जा रही है।
    जन सरोकार से जुड़े मुद्दों पर अखबार कभी कभी उचित स्थान नहीं देती है तो इन मुद्दों को विज्ञापन के माध्यम से प्रकाशित करना आज की जरूरत हैॽ
    इस तरह अब मीडिया में जनसरोकार और समाजिक मुद्दों पर रूचि अखबार के प्रंबधन समिति अपने फायदें को देख कर लेती है। जिससे इन मुददों को अखबार में स्थान नहीं मिलता है। तब जनसरोकार के मुद्दों पर अखबारों में बकायदा पैसे देकर विज्ञापन द्वारा अपनी बात कहना ज्यादा प्रभावशाली है। इससे लोगों के हित की बात पहुंचेगी और सरकार चेतेगी। वहीं किसी अखबार को इन मुद्दों पर किसी कारणवश रूचि न होने पर वह कम से कम विज्ञापन के तौर पर तो छापने से इंकार तो नहीं कर सकता है। और लोगों में यह स्पष्ट रहेगा की यह समाजिक मुदृदा विज्ञापन है अगर आपाकों उचित लगता है तो इस मुददे का समर्थन कीजिए लेकिन हम जानते है कि सच्चाई की समर्थन सभी करते हैं।
    सूत्रों के मुताबिक खबरें बाद में पलट जाती है लेकिन उस समय अपना प्रभाव छोड़ जाती हैॽ
    जबकि ऐसी भ्रामक खबरें टीईटी को लेकर आती है। जहां पत्रकारिता पर सवाल उठना लाजिमी है। आरटीई एक्ट संसद में पारित हुआ है और इसे संसद ही संशोधित कर सकती है। लेकिन मीडिया में तथ्यों को बिना समझे खबरें लिखी जाती है। एकपक्षीय खबरें होती है कि दूसरें पक्ष की बातें नहीं कही जाती है। और एक पक्ष का विश्लेषण होता है जबकि उसी मुद्दे के दूसरे पक्ष का विश्लषण निश्पक्ष नहीं किया जाता है। वहीं यह बात टीईटी एकेडमिक मेरिट वर्सेज एकेडमिक मेरिट में क्या सही हैॽ आज के इस प्रतियोगिता के इस दौर में इस पर मीडिया बहस करने से बचती है और केवल सरकार की बातों को उठाती हैं। और एक तरह से समर्थन करती है। और यहां कितने ऐसे छात्र है जो टीईटी मेरिट के चयन के लिए मेंहनत की। और सरकार बदलने के बाद चल रही प्रक्रिया को निरस्त करने की खबरों को ही ज्यादा प्रमुखता दी जा रही है। वहीं दूसरा पक्ष यानी टीईटी मेरिट या प्रतियोगी परीक्षा यानी इस लोकतंत्रिक तरीके बारे में कोई बहस नहीं हाती है। टीईटी भर्ती पर अभी कोई रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई है। लेकिन जो खबरें दी जा रही है वह सूत्रों के मुताबिक है। लेकिन निश्पक्ष विश्लेषण की संभावना तो बनती है।
    अभिषेक कांत पाण्डेय

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  5. क्या मीडिया टीईटी मेरिट के मुद्दे पर विमर्श से बच रही है ॽ
    पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। सवाल उठता है कि मीडिया समाजिक मुददों पर आज क्यों इतना मौन है। शिक्षा एक ऐसा मुद्दा है जिस पर मीडिया की भूमिका स्पष्ट होनी चाहिए।
    शिक्षा अधिकार कानून आने के बाद राज्य सरकारें टीईटी और नियुक्‍ति जैसे मामले में कोई सार्थक फैसला नहीं ले रही है और ना ही एनसीटीई की गाईड लाइन को ठीक ढंग से लागू कर पा रही है। प्राथमिक टीचर भर्ती पर विवाद बना है लेकिन मीडिय तनिक भी रूचि नहीं ले रही है। क्या टीईटी मेरिट सही हैॽ एकेडमिक मेरिट से अंतिम चयन कहां तक जायज हैॽ इसके प्रभाव क्या हैॽ क्यों नियमों में परिवर्तन किया जा रहा हैॽ इसके पीछे क्या मंशा है। जैसे मुद्दों पर मीडिया भी सही पत्रकरिता नहीं कर रही हैॽ कहीं कहीं तो अपनी रिपोर्ट में आरटीई एक्ट और एनसीटीई आदि के गाईड लाइन को बिना समझें खबरें बनाई जा रही है। मीडिया एक तरफ स्कूलों में नकल की खबरें छापती है तो दूसरी तरफ एकेडमिक मेरिट की आलोचना से दूर रहती है। मीडिया में विमर्श नहीं हो रहा हैॽ नकल माफियों के मन मुताबिका सब हो रहा है। अनिवार्य निशुल्क शिक्षा एक कानून है जिसके अंतर्गत गुणवत्तायुक्त शिक्षा की बात करता है। परिषदीय विद्यालयों की हालत किसी से छिपी नहीं है। पढ़ाई के नाम पर खानापूर्ति हो रही है। टीचर सही से पढा नहीं रहे हैं। मीडिया में इस तरह की खबरें आती रही हैं। आखिर टीईटी मेरिट या प्रतियोगी परीक्षा के माध्यम से प्राइमरी टीचर की भर्ती होना कितना सही हैॽ इस पर कोई बहस नहीं छपती है। बस सूत्रों के मुताबिक हर दिन वहीं खबर को चटकारेदार बनाकर तोड़ मड़ोरकर छपती रहती हैं। यहां अखबारों में भी टीआरपी का खेल जारी है। एकेडिमिक मेरिट की बात करें तो ज्यादा लोग अखबार पढ़ेंगे। और अगर टीईटी मेरिट की बात करेंगे तो टीआरपी कम होगी और टीईटी निरस्त की खबर में टीईटी फेल वाले रूचि लेंगे जिनकी संख्या अधिक है वे पढ़ेंगे और सरकुलेशन अखबार का बढ़ेगा। ऐसी मानसिकता के साथ पत्रकारिता की जा रही है।
    जन सरोकार से जुड़े मुद्दों पर अखबार कभी कभी उचित स्थान नहीं देती है तो इन मुद्दों को विज्ञापन के माध्यम से प्रकाशित करना आज की जरूरत हैॽ
    इस तरह अब मीडिया में जनसरोकार और समाजिक मुद्दों पर रूचि अखबार के प्रंबधन समिति अपने फायदें को देख कर लेती है। जिससे इन मुददों को अखबार में स्थान नहीं मिलता है। तब जनसरोकार के मुद्दों पर अखबारों में बकायदा पैसे देकर विज्ञापन द्वारा अपनी बात कहना ज्यादा प्रभावशाली है। इससे लोगों के हित की बात पहुंचेगी और सरकार चेतेगी। वहीं किसी अखबार को इन मुद्दों पर किसी कारणवश रूचि न होने पर वह कम से कम विज्ञापन के तौर पर तो छापने से इंकार तो नहीं कर सकता है। और लोगों में यह स्पष्ट रहेगा की यह समाजिक मुदृदा विज्ञापन है अगर आपाकों उचित लगता है तो इस मुददे का समर्थन कीजिए लेकिन हम जानते है कि सच्चाई की समर्थन सभी करते हैं।
    सूत्रों के मुताबिक खबरें बाद में पलट जाती है लेकिन उस समय अपना प्रभाव छोड़ जाती हैॽ
    जबकि ऐसी भ्रामक खबरें टीईटी को लेकर आती है। जहां पत्रकारिता पर सवाल उठना लाजिमी है। आरटीई एक्ट संसद में पारित हुआ है और इसे संसद ही संशोधित कर सकती है। लेकिन मीडिया में तथ्यों को बिना समझे खबरें लिखी जाती है। एकपक्षीय खबरें होती है कि दूसरें पक्ष की बातें नहीं कही जाती है। और एक पक्ष का विश्लेषण होता है जबकि उसी मुद्दे के दूसरे पक्ष का विश्लषण निश्पक्ष नहीं किया जाता है। वहीं यह बात टीईटी एकेडमिक मेरिट वर्सेज एकेडमिक मेरिट में क्या सही हैॽ आज के इस प्रतियोगिता के इस दौर में इस पर मीडिया बहस करने से बचती है और केवल सरकार की बातों को उठाती हैं। और एक तरह से समर्थन करती है। और यहां कितने ऐसे छात्र है जो टीईटी मेरिट के चयन के लिए मेंहनत की। और सरकार बदलने के बाद चल रही प्रक्रिया को निरस्त करने की खबरों को ही ज्यादा प्रमुखता दी जा रही है। वहीं दूसरा पक्ष यानी टीईटी मेरिट या प्रतियोगी परीक्षा यानी इस लोकतंत्रिक तरीके बारे में कोई बहस नहीं हाती है। टीईटी भर्ती पर अभी कोई रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं हुई है। लेकिन जो खबरें दी जा रही है वह सूत्रों के मुताबिक है। लेकिन निश्पक्ष विश्लेषण की संभावना तो बनती है।
    अभिषेक कांत पाण्डेय

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  6. Abhishek kant pandey ji aap ki bat se poori tarah sahnat hoon. Aap jaise logo ki hamare sangthan ki sakt jaroorat hai. Aap jaise log yadi ham longo ko lead karenge to jeet awashya milegi. Agar is lekh ko aur sarvjanik kiya jaye to behtar hoga. Kuch log abi bhi sahi baton se bahut door hai. Vo curuption ko bhagya ka dosh man le rahe hai. Aur rasta chod dete hai ummede chod dete hain.

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