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Saturday, July 26, 2014

GTET : GSEB Teacher Eligibility Test – I (TET-I) Call Letter Notification (Std 01 to 05)

GTET : GSEB Teacher Eligibility Test – I (TET-I) Call Letter Notification (Std 01 to 05)

GTET, Gujarat TET,

GSEB Teacher Eligibility Test – I (TET-I) Call Letter Notification (Std 01 to 05) :
To Download Call Letters : Click Here (From 27-07-2014)
Exam Date : 03-08-2014




http://naukri-recruitment-result.blogspot.com/
http://gujarat-tet.blogspot.com/


18 comments:

  1. जिन्हे खुद पर भरोसा नही उनके पास डरने और डराने के अलावा दूसरा विकल्प न कल था और न आज है । और जिन्हे खुद पर भरोसा है अपनी सत्यता ईमानदारी और भारतीय संहिता पर भरोसा है वह न तो पहले कभी डरे थे और न आज डरने की आवश्यकता है । डाल पर बैठा पंछी डाल पर नही खुद के पंखों की ताकत पर भरोसा करता है डाल के हिलने पर विलाप नही करता । इसलिए हमे तो अपने विधि सम्मत होने पर जो भरोसा कल था वही आज है । जिसको टेट मैरिट और पुराने विज्ञापन के विधि सम्मत होने का भरोसा नही है वह डरने के अलावा और कर भी क्या सकता है ?

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  2. हम जिन राहोँ पे निकले हैँ
    कुछ लोग तूफां बनके खड़े हैँ
    लेकिन इस बार हमने भी ठानी हैँ
    अब खुद का रुख न छोड़ेँगे
    अब तूफानोँ का रुख न मोड़ेँगे
    बस अब इसे रौँदते हुए
    मंजिल की ओर बढ़ते जायेँगे॥

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  3. ऐसा करते हुए यह ध्यान रखें कि जिस सरकार को सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की परवाह नही उसके प्रशासन को हमसे क़ानून का पालन करने की भी उम्मीद नहीं करनी चाहिए ....
    मुझे विश्वास है कि जो मैं कहना चाहता हूँ उसे बिना कहे ही आप समझ जाओगे ...

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  4. एक पद आप का भी हैँ

    दिनांक
    05/08/2014

    दिन - मंगलवार

    स्थान - चार बाँग रेलवे स्टेसन

    समय - 10 बजेँ

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  5. किनारे पर आकर रुक न जाना...
    मंजिल बस दो कदम दूर है...

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  6. जूनियर की काउंसलिंग से पहले जो चीख- चीख कर कहते थे कि मुझे तो नॉएडा , गाजियाबाद , लखनऊ , इलाहबाद , मेरठ डिस्ट्रिक्ट ही चाहिए , मेरे होम डिस्ट्रिक्ट के आलावा मुझे और कोई डिस्ट्रिक्ट मंजूर नहीं
    ........

    अब वही कैंडिडेट्स उम्मीद और हसरत भरी नजर से बलामपुर , ललितपुर , श्रीवास्ती , कुशीनगर इत्यादि डिस्ट्रिक्ट को देख रहे हैं !

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  7. नया साफ्टवेयर आयेगा ।

    हमे मास्टर बनायेगा।

    बीत गये है तीन साल ।

    करते करते इतज़ार

    पर दिल अभी थका नही

    यद्यपि नीच पलटुआ का

    दमन रूका नही।

    पर अटल विश्वास है हमे

    5 का हल्ला बोल नया आत्मविश्वास जगायेगा....

    नया साफ्टवेयर आयेगा

    हमें मास्टर बनायेगा।

    .........
    5 को लखनऊ पलटुआ खे मुह पर थूकने
    जरूर आना ........आ.आआआआ.........थूथूथूथू........

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  8. अब जब नौका पार लगने को आयी तो साथियों हिम्मत कैसे तोड रहे हो
    तुम वही हो जो तूफानों के रूख मोड रहे हो
    वो नादान क्या जाने तुम्हारी काबिलियत
    तुम अपनी काबिलियत से इतिहास बदल रहे हो
    जरा उन हैवानों से जाकर पूंछो
    कि तुम किस तरह शोले बन बरस रहे हो
    यह अन्तिम दौर है तपने का
    कि तुम कुन्दन बन निखर रहे हो
    क्या चमकेगी किसी और की विजय पताका
    कि तुम सूरज से बढकर चमक रहे हो
    धरा गर्व महसूस करती है अपनी छाती पर
    कि तुम उसके बेटे रहे हो
    तेरी हिम्मत के चर्चे दुश्मनों की महफिल में हैं
    कि दुश्मन ऐसे दहल रहे हैं
    यह प्रहार हम पर अब आखिरी है
    और वो सब निष्फल हो रहे हैं
    जीतते आये हैं , जीतते ही रहेंगे
    तुम उस माँ के बेटे रहे हो ।

    याद रखना मेरी इन पंक्तियों को ,
    जब आप आने वाली यह दीपावली किसी प्राथमिक विद्यालय में ट्रेनिंग कर मना रहे हों ।

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  9. वो सत्ता और सिहासन की हनक में है ।
    हम भी बहुत खो चुके अब पाने की ललक में है,,,
    ये दौर ए सियासत का दो साल बाद बताएगा ।
    कि तुम सनक में थे या हम सनक में है ।।

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  10. एक बाबा किसी महफ़िल में गए तो वहाँ सब उनका मजाक़ उड़ाने लगे।
    .
    बाबा ने कहा, "देखो हम फ़क़ीर लोग हैं हमारा मजाक़ ना उडाएं।"
    .
    लोग फिर भी न हटे और ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे।
    .
    अचानक उन सब लोगों को दिखना बंद हो गया।
    .
    वो सब बाबा के क़दमो में गिर गए और प्रार्थना करने लगे, "बाबा जी हमें माफ़ कर दो।"
    बाबा ने अपना जूता उतारा और सबको एक एक मारा और बोले, "कमीनों लाइट चली गई है। कोई जनरेटर चालू करो मुझे भी नहीं दिखाई दे रहा।"

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  11. वो भी जिन्दा है,मैं भी जिन्दा हूँ…

    क़त्ल सिर्फ इश्क़ का हुआ है …

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  12. प्रेम को न पूर्ण रूप से छुपाया जा सकता है न ही दिखाया जा सकता है। जितना ही हम इसे छुपाते हैं उतना ही यह दिख जाता है ।
    है ना कुदरत की बाजीगिरी ?

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  13. एक बहुत ही पुरानी कहानी है..... जो आज के हम हिन्दुओं पर बिलकुल सटीक बैठती है...!

    हुआ कुछ यूँ था कि.....

    एक चतुर व्यक्ति को अपनी मृत्यु से बहुत डर लगता था..... इसीलिए , एक दिन उसे चतुराई सूझी और ""काल"" को अपना मित्र बना लिया...
    और, उससे कहा - मित्र, तुम किसी को भी नहीं छोड़ते हो, किसी दिन मुझे भी ""गाल में धर लोगो""।

    काल ने कहा-सृष्टि नाटक का यह शाश्वत नियम है... इसीलिए मैं मजबूर हूँ... लेकिन, आप मेरे मित्र है ... इसीलिए , मैं आपकी जितनी सेवा कर सकता हूँ जरूर करूँगा , आप मुझ से क्या आशा रखते है बताइये........????????

    इस पर उस चतुर व्यक्ति ने कहा...........मैं इतना ही चाहता हूँ कि ......
    आप मुझे लेने पधारने से कुछ दिन पहले एक पत्र अवश्य लिख देना........ ताकि, मैं अपने बाल-बच्चो को कारोबार की सभी बाते अच्छी तरह से समझा दूँ........ और, स्वयं भी भगवान के भजन में लग जाऊँ।

    उस व्यक्ति की ऐसी बातें सुनते ही काल ने बहुत प्रेम से कहा..........
    यह कौन सी बड़ी बात है....... मैं आपको लेने आने से पहले .....एक नहीं आपको चार पत्र भेज दूँगा......

    ये सुनकर वो....... मनुष्य बड़ा प्रसन्न हुआ सोचने लगा कि...........
    आज से मेरे मन से काल का भय भी निकल गया और अब मैं जाने से पूर्व अपने सभी कार्य पूर्ण करके जाऊँगा..... तो देवता भी मेरा स्वागत करेंगे.......!

    दिन बीतते गये......... आखिर मृत्यु की घड़ी आ पहुँची..........

    नियत समय पर.......
    काल अपने दूतों सहित उस चतुर व्यक्ति के समीप आकर कहने लगा......आपके नाम का वारंट मेरे पास है मित्र चलिए.......!

    मैं सत्यता और दृढ़तापूर्वक अपने स्वामी की आज्ञा का पालन करते हुए एक क्षण भी तुम्हें और यहाँ नहीं छोड़ूँगा..........

    ये सुनते ही...... मनुष्य के माथे पर बल पड़ गये और, उसकी भृकुटी तन गयी तथा..... कहने लगा धिक्कार है तुम्हारे जैसे मित्रों पर.........

    मेरे साथ विश्वासघात करते हुए तुम्हें लज्जा नहीं आती ?

    तुमने तो मुझे वचन दिया था कि .........लेने आने से पहले पत्र लिखूँगा.....????

    मुझे बड़ा दुःख है कि......... तुम बिना किसी सूचना के अचानक ही दूतों सहित मेरे ऊपर चढ़ आए और, मित्रता तो दूर रही..... तुमने अपने वचनों तक को भी नहीं निभाया।

    काल हँसा और बोला......... मित्र इतना झूठ तो न बोलो।

    तुम तो मेरे सामने ही मुझे झूठा सिद्ध कर रहे हो........ क्योंकि.... मैंने आपको एक नहीं चार पत्र भेजें.. परन्तु, आपने एक भी उत्तर नहीं दिया।

    मनुष्य ने चौक कर पूछा.........
    कौन से पत्र .......?????
    कोई प्रमाण है .........??????????

    मुझे पत्र प्राप्त होने की कोई डाक रसीद आपके पास है...... तो दिखाओ......??????

    काल ने कहा - मित्र, घबराओ नहीं.. क्योंकि.... मेरे चारों पत्र इस समय आपके पास मौजूद है।

    मेरा पहला पत्र........... आपके सिर पर चढ़कर बोला..... और, आपके काले सुन्दर बालों को पकड़ कर उन्हें सफ़ेद कर दिया ....साथ ही यह भी सन्देश दिया कि सावधान हो जाओ.. तथा , जो करना है कर डालो।

    नाम, बड़ाई और धन-संग्रह के झंझटो को छोड़कर.......... भजन में लग जाओ.......... पर , मेरे पत्र का आपके ऊपर जरा भी असर नहीं हुआ।

    बनावटी रंग लगा कर ........आपने अपने बालों को फिर से काला कर लिया......और, पुनः जवान बनने के सपनों में खो गए।

    आज तक मेरे श्वेत अक्षर..... आपके सिर पर लिखे हुए है।

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  14. कुछ दिन बाद...........
    मैंने दूसरा पत्र आपके नेत्रों के प्रति भेजा........... और, नेत्रों की ज्योति मंद होने लगी........... फिर भी आँखों पर मोटे शीशे चढ़ा कर आप जगत को देखने का प्रयत्न करने लगे।

    आपने ......दो मिनट भी संसार की ओर से आँखे बंद करके, ज्योतिस्वरूप प्रभु का ध्यान, मन में नहीं किया......

    जब आप ......... इतने पर भी सावधान नहीं हुए......
    तो, मुझे आपकी दीनदशा पर बहुत तरस आया और मित्रता के नाते मैंने तीसरा पत्र भी भेजा।

    मेरे इस इस पत्र ने ...........
    आपके दाँतो को छुआ, हिलाया और तोड़ दिया.........परन्तु, अपने इस पत्र का भी जवाब न देखकर जबरदस्ती नकली दाँत लगवाये और जबरदस्ती संसार के भौतिक पदार्थों का स्वाद लेने लगे।

    आपके इन कृत्यों पर मुझे बहुत दुःख हुआ कि.......
    मैं सदा इसके भले की सोचता हूँ....... और, यह हर बार एक नया, बनावटी रास्ता अपनाने को तैयार रहता है।

    तब अपने अन्तिम पत्र के रूप में मैंने..........
    रोग-क्लेश तथा पीड़ाओ को भेजा परन्तु, आपने अहंकार वश सब अनसुना कर दिया।

    इस तरह जब उस चतुर मनुष्य ने .................
    काल के भेजे हुए पत्रों को समझा.......... तो, फूट -फूट कर रोने लगा .........और, अपने विपरीत कर्मो पर पश्चाताप करने लगा।

    उसने स्वीकार किया कि .........
    मैंने गफलत में शुभ चेतावनी भरे इन पत्रों को नहीं पढ़ा........ और, मैं सदा यही सोचता रहा कि .......कल से भगवान का भजन करूँगा.........अपनी कमाई अच्छे शुभ कार्यो में लगाऊँगा.........पर वह कल नहीं आया।

    इस पर काल ने कहा..........
    आज तक तुमने जो कुछ भी किया, राग-द्वेष, स्वार्थ और भोगों के लिए किया।

    जो ........जान-बूझकर ईश्वरीय नियमों को जो तोड़ता है, वह अक्षम्य है।

    अंततः जब.........
    उस मनुष्य को जब बातों से काम बनते हुए नज़र नहीं आया........ तो, उसने काल को करोड़ों की सम्पत्ति का लोभ दिखाया।

    जिस पर काल ने हँसकर कहा............
    यह मेरे लिए धूल है क्योंकि...... लोभ संसारी लोगो को वश में कर सकता है, मुझे नहीं.......

    यदि तुम मुझे लुभाना ही चाहते थे........
    तो, सच्चाई और शुभ कर्मो का धन संग्रह करते।

    काल ने जब मनुष्य की एक भी बात नहीं सुनी.........
    तो, वह हाय-हाय करके रोने लगा.......... और, सभी सम्बन्धियों को पुकारा परन्तु काल ने...... उसके प्राण पकड़ लिए और चल पड़ा अपने गन्तव्य की ओर।

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  15. अजीब बात है पूरा प्रदेश कह रहा है कि शिक्षामित्रोँ का प्रशिक्षण व समायोजन अवैध है फिर भी कोई पीठ समायोजन पर स्टे देने को तैयार नही हो रही ! मानो या न मानो कुछ न कुछ तो गड़बड़ है ?? आम जनता की भावनाओं को देखते हुए ऐसा क्यों हो रहा है ?? जाँच कराई जानी चाहिए ! अगर कोई कानून आड़े आ रहा है तो उसे मोदी जी से संपर्क कर रद्द कराया जाएगा मगर बिना स्टे लिए चैन से नही बैठेगे!!

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  16. एक कुंवे मे एक मेंढक रहता था। एक बार समुन्द्र का एक मेंढक कुंवे मे आ पहुंचा तो कुंवे के मेंढक ने उसका हालचाल, अता पता पूछा। जब उसे ज्ञांत हुआ कि वह मेंढक समुन्द्र मे रहता हैं और समुन्द्र बहुत बड़ा होता हैं तो उसने अपने कुंवे के पानी मे एक छोटा-सा चक्कर लगाकर उस समुन्द्र के मेंढक से पूछा कि क्या समुन्द्र इतना बड़ा होता हैं?
    कुंवे के मेंढक ने तो कभी समुन्द्र देखा ही नहीं था। समुन्द्र के मेंढक ने उसे बताया कि इससे भी बड़ा होता हैं।
    कुंवे का मेंढक चक्कर बड़ा करता गया और अंत मे उसने कुंवे की दीवार के सहारे-सहारे आखिरी चक्कर लगाकर पूछा- "क्या इतना बड़ा हैं तेरा समुन्द्र ?"
    इस पर समुन्द्र के मेंढक ने कहा- "इससे भी बहुत बड़ा?"
    अब तो कुंवे के मेंढक को गुस्सा आ गया। कुंवे के अलावा उसने बाहर की दुनिया तो देखी ही नहीं थी। उसने कह दिया- "जा तू झूठ बोलता हैं। कुंवे से बड़ा कुछ होता ही नहीं हैं। समुन्द्र भी कुछ नहीं होता।"

    मेंढक वाली ये कथा यह ज्ञांत करती हैं कि जितना अध्धयन होगा उतना अपने अज्ञान का आभास होगा। आज जीवन मे पग-पग पर ह्मे ऐसे कुंवे के मेंढक मिल जायेंगे, जो केवल यही मानकर बैठे हैं कि जितना वे जानते हैं, उसी का नाम ज्ञान हैं, उसके इधर-उधर और बाहर कुछ भी ज्ञान नहीं हैं। लेकिन सत्य तो यह हैं कि सागर कि भांति ज्ञान की भी कोई सीमा नहीं हैं। अपने ज्ञानी होने के अज्ञानमय भ्रम को यदि तोड़ना हो तो अधिक से अधिक अध्धयन करना आवश्यक हैं जिससे आभास होगा कि अभी तो बहुत कुछ जानना और पढ़ना बाकी हैं।

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  17. लड़कों और लड़कियों की दोस्ती में ये हैं फर्क
    दो लडकियां आमने-सामने जब बात करती हैं।
    पहली - हाए स्वीटहार्ट।
    दूसरी - हाई , मेरी शोना , आई मिस यू।
    और दोनों एक दुसरे के बारे में पीठ पीछे बोलती हैं।

    पहली - अरे वो एक नंबर की नकचढ़ी हैं, घमंडी हैं।

    दूसरी - मैं तो उसे भाव ही नहीं देती , शक्ल से बंदरिया लगती हैं___________________________________________

    जब 2 लड़के जब आमने सामने बात करते हैं।

    पहला - कैसा हैं कमीने ,
    लाल शर्ट में तो पूरा ***** लग रहा हैं बे।
    दूसरा - अपने बाप से मजाक करता हैं साले।
    और दोनों एक दुसरे के बारे में पीठ पीछे बोलते हैं।

    पहला - मस्त बंदा हैं यार।

    दूसरा - खबरदार उसके बारे में कुछ गलत बोला तो, भाई हैं वो

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  18. sir meri marsheet me dono jagah matlab candidate wa father,s name ke aage mere pita ji ka naam he likh gaya hai ...... maine iss vishay me 31/3/2012 se he karyawahi shuru kar di thi aur apni mool markshhet bhi bhej chuki hu .....main do baar allahabad bhi hokar aa gai.....patrantu abhi tak meri sahi marksheet nahi mil paayi hai......???? pehle to iss cheez se bevakoof banate the unke paas koi nrecord nahi hai....per ab to paper me bhi aa gaya ki madyamik shiksha parishad ne uptet 2011 record ki copy sachiv basic shiksha wa scert ko saup di hai.....main kya karu sir main bhut gehre avsaad me hu ...jaise jaise time guzarta ja raha hai meri chinta badhti ja rahi hai.......aap he bataaye main kya karu.....apke paas koi news ho sir to jaroor bataye ....wa apna sjhaav bhi avashya de......dhanyawad

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